क्या वाकई महाराणा प्रताप के कवच, भाला व तलवार का वजन 200 किलोग्राम था?
क्या वाकई महाराणा प्रताप के कवच, भाला व तलवार का वजन 200 किलोग्राम था?
ये सवाल कई जगह सामने आता है । शुक्र है कि आज इस सवाल का जवाब देने का मौका मिला ।
तो क्या महाराणा प्रताप के कवच और हथियारों का वजन सच मे इतना ज़्यादा था । तो सही जवाब है नहीं बिल्कुल भी नहीं ।
असल मे पुराने ज़माने मे हल्के और मजबूत हथियारों को हि बेहतर माना जाता था ना कि भारी भरकम हथियारों को ।
युद्धों मे काम आने वाली तलवार अधिकतम 3 से 4 किलो कि होती थी । जिस से उसे तेजी से चलाने मे कोई समस्या नहीं आए । ढाई से तीन किलो कि तलवार यदि मजबूत भी हो तो उसे अति उत्तम माना जाता था ।
तस्वीर मेवाड़ी तलवार।
दमिश्क कि तलवारें इसी वजह से मशहूर और बहुत मांग मे थी । क्यूँ कि दमिश्क का इस्पात देसी लोहे से वजन मे काफी हल्का होता था । इसकी तलवार एक से ढाई किलो तक मे बन जाती थी ।
तस्वीर दमिश्क कि तलवार
आपको क्या लगता है ढाई तीन किलो कि फुर्ती से चलती तलवारों का मुकाबला महाराणा और उनकी सेना 25 से 40 किलो कि तलवारों से कर रहे थे । बिल्कुल भी नहीं । वे कोई मूर्ख् नहीं थे बल्कि भारत के शानदार सेना नायकों मे से एक थे । तो क्या वे इतनी बड़ी सैन्य भूल करेंगे ?
भाले का वजन भाले कि बनावट पर निर्भर करता था । पूर्णत धातु के बने भाले वजनी होते थे । जिन्हें पैदल सेना इस्तेमाल करती थी इनका वजन अधिकतम सात से नौ किलो तक होता था ।
पैदल सेना वाले भाले।
परन्तु शिकार मे इस्तेमाल किये जाने वाले भाले और रथों पर इस्तेमाल होने वाले भालो के डंडे मे लकड़ी का इस्तेमाल होता था ताकि उसका वजन कम हो और उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा से ज़्यादा दूरी तक सटीकता से फेंका जा सके ।
शिकार मे प्रयुक्त भाले ।
शरीर के रक्षा कवच का वजन होता था 25 से 30 किलो । और ये भी शुद्ध धातु से नहीं बल्कि धातु और चमडे कि परतों मे बनाया जाता था जिस से ये अधिक लचीला हल्का व मजबूत हो । केवल शीश कवच का वजन हि 3 से 5 किलो तक होता था । ताकि सुरक्षा मे कमी ना आए ।
इन दिनों महाराणा प्रताप के उन शस्त्रों को लेकर बहुत कहानी बनायीं जा रही है जो कि म्यूजियम मे रखे है । उनको लेकर लोग तुक्के लगा रहे हैं । जबकि वे केवल महाराणा को उपहार स्वरूप मिली चीज़ है और कुछ नहीं । उनका इस्तेमाल युद्धों मे नहीं बल्कि शो पीस के रूप मे होता था ।
महाराणा प्रताप निसंदेह रूप से एक महान योद्धा थे । लेकिन उनके नाम के साथ खुद कि बनायीं अतिशयक्ति जोड़ जोड़ कर कूछ का कूछ लिख देते हैं । यदि महाराणा प्रताप स्वयं जीवित भी होते तो उन जैसा योद्धा झूठी तारीफ तो बिल्कुल भी पसंद नहीं करता बल्कि झूठी तारीफ को अपमान मान के तशरीफ़ पे दो चार लट्ठ बजा देते वो अलग ।
वे भी इंसान थे और ये भली भांति जानते थे कि युद्ध मे एकमात्र लक्ष्य ये होता है कि तेजी से दुश्मनों को मार कर युद्ध जीत सके । ना कि अपनी तारीफ करवाने के लिए कि कल को कोई ये कह सके कि महाराणा प्रताप 300 या 400 किलो के वजन के साथ लड़े ।
महाराणा प्रताप कि वीरता उनके द्वारा इस्तेमाल किये गए हथियारों के वजन से नहीं नापी जाती । बल्कि उनके समर्पण और निष्ठा से देखी जाती है ।
धन्यवाद् ।
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